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रविवार, 10 अप्रैल 2022

सेठ तो सांवरिया सेठ, बाकी सब फोटो स्टेट

हैलो फ्रेंड्स,

राजस्थान का चित्तौड़गढ़ जिला शौर्य गाथाओं के अतिरिक्त अपनी धार्मिक श्रद्धा हेतु भी विश्व प्रसिद्ध है, तभी तो इसे 'शक्ति व भक्ति का नगर' उपमा से नवाजा गया है। Yatrafiber का आज का ब्लॉग चित्तौड़गढ़ जिले के सांवरिया जी धाम को समर्पित है।

सांवरिया सेठ के मंदिर को सांवलिया जी के नाम से भी जाना जाता है। यह विश्व प्रसिद्ध सांवरिया धाम राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले की भदेसर तहसील के मंडपिया गाँव में स्थित है। यह सांवरिया जी की महिमा ही है कि मंडपिया गाँव को लोग सांवरिया जी ग्राम के नाम से भी जानते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित तह सांवरिया जी मंदिर चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन से लगभग 47 किमी दूर स्थित है। रेलवे स्टेशन से सांवरिया जी बस या निजी वाहन करके आसानी से पहुँचा जा सकता है। महाराणा प्रताप हवाईअड्डा, डबोक, उदयपुर की सांवरिया जी से दूरी लगभग 73 किमी है। वहाँ से भी बस अथवा निजी वाहन द्वारा आसानी से सांवरिया जी पहुँचा जा सकता है।

सांवरिया जी की प्रसिद्ध कथा के अनुसार इस मंदिर में स्थित कृष्ण जी की मूर्ति वही मूरत है, जिसकी पूजा-अर्चना स्वयं मीराबाई किया करती थीं। वे जहाँ भी जाती थीं, अपनी कृष्ण मूर्तियों को साथ लेकर जाती थीं। जब मेवाड़ भूमि पर औरंगजेब ने आक्रमण किया तो उसने सभी मंदिरों व मूर्तियों को नुकसान पहुँचाना प्रारंभ कर दिया। उसने जब मीराबाई की कृष्ण मूर्तियों के बारे में सुना तो उन्हें भी खण्डित करने का इरादा कर लिया। उसके मनसूबों को जानकर संत दयाराम ने मीराबाई की कृष्ण मूर्तियों को चित्तौड़गढ़ के बागुंड गाँव के छापर यानि खुले मैदान में भूमि के अंदर छिपा दिया।

कालांतर में भोलाराम गुर्जर नाम के व्यक्ति को बागुंड गाँव में श्रीकृष्ण जी की चार दिव्य मूर्तियाँ भूमि में गड़े होने का स्वप्न आया। स्वप्न से प्रेरित होकर जब उस स्थल की खुदाई की गई तो वास्तव में वहाँ श्रीकृष्ण जी की चार अलौकिक मूर्तियाँ प्राप्त हुईं। इनमें से एक मूर्ति खोदते समय खण्डित हो जाने के कारण वापस उसी स्थान पर भूमिगत कर दी गई। शेष तीन मूर्तियों में से एक को प्रकट होने वाले स्थान पर ही स्थापित कर दिया गया, इसी कारण वहाँ स्थित मंदिर को प्राकट्य स्थल मंदिर कहा जाता है। दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा में स्थापित किया गया। तीसरी व सबसे छोटी मूरत को मंडपिया ग्राम में स्थापित किया गया। तीनों ही स्थानों पर कृष्ण जी के मंदिर निर्मित करवाए गए, जिनमें से मंडपिया स्थित कृष्ण धाम सबसे अधिक प्रसिद्ध है।

सांवरिया जी के इस विशाल मंदिर की वास्तुकला देखने लायक है। अन्य हिन्दू मंदिरों की तरह गर्भगृह, बरामदे, खम्भे, गुम्बद व खूबसूरत कलाकारी से अलंकृत इस कृष्ण धाम का प्रवेश-द्वार काफी विशाल है। गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित यह शानदार मंदिर गुजरात के अहमदाबाद में स्थित अक्षरधाम मंदिर के समान दिखाई देता है। मंदिर में गर्भगृह से दोनों तरफ जुड़ते हुए लम्बे बरामदे स्थित हैं। इन बरामदों का चक्कर लगाते हुए ही गर्भगृह में प्रवेश किया जाता है। बरामदों में श्रीकृष्ण जी की जीवन लीलाएँ दर्शाती हुईं बेहद सुंदर तस्वीरें लगी हुई हैं। पूरे बरामदों में खम्भों पर बहुत ही सुंदर तरीके से कलाकृतियाँ उकेरी गई हैं। बरामदों के ऊपर छोटी-छोटी गुंबद जैसी आकृतियाँ बनाई गई हैं, जो मंदिर को एकरूपता और खूबसूरती प्रदान करती हैं। मंदिर के सामने चारों तरफ बरामदों से घिरा हुआ सुंदर बगीचा विकसित किया गया है, जो कि मंदिर के लालित्य में और वृद्धि कर देता है। मंदिर के सुंदर वातावरण में श्रद्धालु जैसे खो से जाते हैं। ऊँचे शिखर युक्त इस सांवरिया जी मंदिर पर बारीकी से बहुत ही सुंदर नक्काशी की गई है। बेहतरीन तरीके से तराशी गई ये अद्भुत कलाकृतियाँ भारतीय मंदिरों को खास बनाती हैं।







सांवरिया धाम का गर्भगृह भी काफी विशाल है। गर्भगृह के अंदर खम्भों व छत पर अत्यधिक मेहनत से तराशकर तैयार की गई कलाकारी वास्तुकला प्रेमियों को अचरज में डाल देती है। स्वर्ण-रजत जड़ित सुंदर गर्भगृह में श्रीकृष्ण जी की श्याम रंग की मूरत विराजित है। सांवरिया जी का ऐसा सुंदर श्रृंगार किया जाता है कि प्रभु का अलौकिक रूप देख श्रद्धालु नतमस्तक हो जाते हैं और संपूर्ण मंदिर जयकारों से गूंज उठता है। इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि पिछले कई वर्षों से इसका निर्माण कार्य लगातार जारी है। प्रतिदिन कोई न कोई विकास कार्य मंदिर में  होता ही रहता है।





सांवरिया जी मंदिर में प्रवेश या दर्शन के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। सांवरिया जी मंदिर सुबह 5:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक तथा दोपहर 2:30 बजे से रात 11:00 बजे तक खुला रहता है। इस दौरान श्रीकृष्ण जी की कुल पाँच आरती की जाती हैं। मंदिर के अंदर कैमरा, गुटखा-सुपारी व खाद्य सामग्री ले जाने पर रोक है। मोबाईल फोन को अंदर ले जाया जा सकता है, परन्तु प्रभु के साथ सेल्फी लेने पर सख्त मनाही है। मंदिर में पीने का पानी, शौचालय तथा  छोटे बच्चों को दूग्धपान हेतु मातृत्वकक्ष की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।

ना सिर्फ राजस्थान व भारत बल्कि संपूर्ण विश्व से प्रतिवर्ष 1 करोड़ से भी अधिक श्रद्धालु सांवरिया जी के दर्शन हेतु आते हैं। अफीम कृषकों के अतिरिक्त अफीम तस्करों की भी सांवरिया जी के प्रति अगाध श्रद्धा है। प्रतिवर्ष करोड़ों रुपयों का चढ़ावा अफीम तस्कर सांवरिया जी को अर्पित करते हैं। लोग सांवरिया जी को अपने व्यापार या अफीम तस्करी में पार्टनर तक बनाते हैं और मनौती करके जाते हैं तथा लाभ होते ही सांवरिया जी का प्रतिशत हिस्सा उनको चढ़ा दिया जाता है। मान्यता है कि जितना अधिक चढ़ावा या प्रतिशत तय किया जाता है, उतना ही अधिक लाभ भी होता है। सांवरिया जी के भक्तों में बहुत से NRI भी शामिल हैं, जो प्रतिवर्ष यहाँ दर्शन हेतु आते हैं तथा विदेशी मुद्रा भी प्रभु चरणों में चढ़ाते हैं। मंदिर में रसीद कटवाकर भी  दान किया जा सकता है।


सांवरिया जी की तरह उनके भक्त भी निराले ही हैं। कोई सैंकड़ों किमी नंगे पाँव चलकर प्रभु-दर्शन हेतु आता है तो कोई दण्डोत करते हुए कृष्ण जी के चरणों में पहुँचता है। प्रत्येक महीने अमावस्या पूर्व चतुर्दशी को सांवरिया जी के दान-पात्र खोले जाते हैं और प्रतिमाह करोड़ों रुपये का चढ़ावा प्राप्त होता है, जिसे गिनने में ही 4-5 दिन लग जाते हैं। चढ़ावे में अफीम, सोने-चाँदी के आभूषण, रुपये तथा विदेशी मुद्रा जैसी बहुत सी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। व्यापारियों तथा अफीम तस्करों से पार्टनरशिप तथा प्रतिमाह करोड़ों रुपयों के चढ़ावे के कारण ही सांवरिया जी को 'सांवरिया सेठ' के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि नानीबाई के मायरे में सांवरिया जी ही रूप धारण कर पहुँचे थे तथा मायरा भरा था। कई भक्त कुछ अलग करने की चाह में सोने-चाँदी से बने पलंग, पंखी, चरण पादुका, ट्रेक्टर, अफीम का पौधा, मोटरसाईकिल जैसी कलाकृतियाँ भी सांवरिया जी को चढ़ाते हैं।

सांवरिया जी के मंदिर में आने वाली चढ़ावे की राशि से सेवा तथा विकास कार्य किए जाते हैं। मंडपिया तथा इसके आसपास के गाँवों के विकास के अतिरिक्त शिक्षा व चिकित्सा क्षेत्र तथा धार्मिक आयोजनों में इस धनराशि को खर्च किया जाता है। मंदिर द्वारा गौशाला भी चलाई जा रही है। अन्य सभी त्यौंहारों को मनाए जाने के अतिरिक्त प्रतिवर्ष जलझूलनी ग्यारस पर सांवरिया जी में विशाल मेला भरता है तथा लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं।

सांवरिया जी मंदिर में दर्शन हेतु आने वाले भक्तों के लिए कार व मोटरसाईकिल पार्किंग सुविधा भी उपलब्ध है। मंदिर के पास बाजार भी स्थित है, जहाँ फूल-मालाएँ, प्रसाद, कपड़े, खिलौने, आभूषण जैसी बहुत सी सामग्रियों की दुकानें लगी हुई हैं। यहाँ का मिश्रीमावा काफी प्रसिद्ध है, साथ ही सांवरिया जी में बनने वाले लड्डू व मठरी भी लोगों द्वारा काफी पसंद किए जाते हैं।

सांवरिया जी मंदिर के आसपास के क्षेत्र में बहुत सी धर्मशालाएँ व होटल उपलब्ध हैं, जिसके कारण यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को ठहरने में बिल्कुल भी असुविधा नहीं होती है। यहाँ बहुत से ढ़ाबे तथा रेस्तरां भी खुले हुए हैं, जहाँ सभी प्रकार के भोजन, विशेष तौर पर राजस्थानी दाल, बाटी, चूरमे का आनंद लिया जा सकता है।

भक्तों तथा भगवान की पार्टनरशिप की अनोखी परम्परा वाले इस सांवरिया धाम में कुछ तो ऐसी बात है कि यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु सांवरिया जी की भक्ति में डूब जाता है और दुबारा यहाँ आने की इच्छा अवश्य रखता है।

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