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शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

भूतों की रहस्यमयी दुनिया वाला राजस्थान का सबसे हॉन्टेड स्थान : भानगढ़ किला

हैलो दोस्तों,

भूत, पिशाच, प्रेत, आत्मा, ये वे शब्द हैं, जिनका नाम सुनते ही कुछ लोग डर से सिहर उठते हैं, तो कुछ लोग एक सिरे से इनका अस्तित्व नकार देते हैं, क्योंकि उनके अनुसार ये सब सिर्फ कोरी कल्पना हैं। सम्पूर्ण विश्व में ऐसे बहुत से स्थान हैं, जिन्हें भूत-प्रेत जैसी नकारात्मक शक्तियों का वास-स्थल माना जाता है तथा लोग ऐसे स्थानों पर कदम रखने से भी डरते हैं। yatrafiber के आज के ब्लॉग में मैं भारत के सबसे डरावने हॉन्टेड प्लेसेज (भूतिया स्थल) में शामिल भानगढ़ के किले के बारे में बताना चाहूँगी।

भानगढ़ का किला राजस्थान के अलवर जिले में राजगढ़ नगरपालिका में स्थित है। भानगढ़ किले तक पहुँचने के लिए नजदीकी हवाई-अड्डा जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, जो कि यहाँ से लगभग 87 किमी दूर स्थित है। जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी लगभग 85 किमी है। जयपुर से निजी वाहन करके आसानी से भानगढ़ के किले तक पहुँचा जा सकता है। किले में प्रवेश हेतु मात्र 25 रुपये/व्यक्ति शुल्क लगता है तथा कैमरे का शुल्क 200 रुपये है। भानगढ़ किला घूमने के लिए अक्टूबर से फरवरी तक का समय सबसे अच्छा है, गर्मियों में तापमान अधिक होने के कारण घूमने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। मानसून में भी यहाँ भ्रमण किया जा सकता है।

भानगढ़ किले का निर्माण आमेर के शासक राजा भगवंत दास ने 16वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में करवाया था। बाद में माधोसिंह ने इसे अपनी राजधानी बना लिया था। सरिस्का अभयारण्य से मात्र कुछ किमी की दूरी पर अरावली पर्वतमाला से घिरे इस भानगढ़ किले की पूरी बस्ती तीन सुरक्षा प्राचीरों द्वारा सुरक्षित की गई थी, जिनमें से बाह्य सुरक्षा प्राचीर में पाँच द्वार - अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, हनुमान गेट, फूलबारी गेट तथा दिल्ली गेट स्थित हैं।

अपनी भूतिया कहानियों के कारण लोगों के लिए कौतूहल का विषय बन चुके भानगढ़ किले के विषय में बहुत सी कथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से सबसे अधिक प्रचलित कथा राजकुमारी रत्नावती की है। कहा जाता है कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बहुत ही सुंदर थी। एक दिन जब वह अपनी सहेलियों के साथ बाजार में इत्र खरीद रही थी, तब सिंघिया नाम के तांत्रिक की नजर उसपर पड़ी। तांत्रिक राजकुमारी रत्नावती के रूप-सौंदर्य पर मर मिटा और उसे पाने के ख्वाब देखने लगा। तांत्रिक ने राजकुमारी को वश में करने हेतु उसकी पसंद के इत्र की बोतल पर वशीकरण मंत्र का प्रयोग किया, ताकि उसे इस्तेमाल करते ही रत्नावती उसके प्रेम में पड़ जाए। परन्तु रत्नावती को तांत्रिक के षड्यंत्र का पता चल गया तथा उसने इत्र की बोतल को एक पत्थर पर पटककर तोड़ दिया। वशीकरण मंत्र के प्रभाव से वह पत्थर तांत्रिक सिंघिया के पीछे लुढ़कने लगा और उसे कुचल दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। परन्तु मरने से पहले तांत्रिक ने श्राप दिया कि शीघ्र ही भानगढ़ के किले में मौत का तांडव होगा, सभी लोग मारे जाएँगे तथा भानगढ़ उजड़ जाएगा। तांत्रिक के श्राप के कारण भानगढ़ पूर्णतः वीरान हो गया। लोगों का मानना है कि आज भी किले में राजकुमारी रत्नावती की चीखें गूँजती हैं तथा उनके परिवार की आत्माएँ किले में भटक रही हैं।

ऐसी ही एक कथा तपस्वी बालानाथ से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महाराज ने भानगढ़ किले का निर्माण प्रारम्भ करवाने से पूर्व यहाँ तपस्या करने वाले बालानाथ जी से आज्ञा माँगी, तब तपस्वी बालानाथ ने आज्ञा देते हुए कहा कि किले की ऊँचाई इतनी ही रखना कि उसकी परछाई मेरे तपस्या स्थल तक ना पहुँचे। परन्तु निर्माण के समय ध्यान नहीं देने के कारण किला अधिक ऊँचा बनवा दिया गया, जिसके कारण उसकी परछाई तपस्वी बालानाथ के तप-स्थल तक पहुँच गई। तपस्वी बालानाथ ने क्रोधित होकर भानगढ़ के किले के उजड़ जाने का श्राप दे दिया, जिसके फलस्वरूप सबकुछ नष्ट हो गया तथा भानगढ़ का किला खण्डहर के रूप में ही शेष बचा। कहा जाता है कि तभी से मरने वाले लोगों की आत्माएँ यहाँ भटक रही हैं।

ऐसी ही कुछ अन्य कथाएँ भी भानगढ़ के किले के बारे में प्रचलित हैं। कथा चाहे जो भी हो, लेकिन यहाँ आस-पास के गाँवों में रहने वाले लोगों का दृढ़ विश्वास है कि किले में प्रेतात्माओं का निवास है। लोगों का कहना है कि यहाँ रात को अजीब सी चीखें सुनाई देती हैं तथा रात को इस किले में प्रवेश करने वाला कोई भी व्यक्ति जीवित वापस नहीं आता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात की जाए तो भानगढ़ के किले तथा इसके आस-पास के स्थलों पर पानी की कमी की समस्या थी। पानी की कमी के कारण लोगों का पलायन प्रारम्भ हुआ। फिर सन् 1783 में पड़े भीषण अकाल ने भानगढ़ को पूर्णतया उजाड़ दिया और तब से अब तक यह खण्डहर के रूप में मौजूद है।

भानगढ़ किले के उजड़ने के बाद बचे अवशेषों में प्राचीर, द्वार, बाजार, हवेलियाँ, मंदिर, शाही महल, छतरियाँ आदि शामिल हैं। वर्तमान में भानगढ़ का किला भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अधीन है, जिसके द्वारा इसकी देखभाल की जाती है।

मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही दाहिने हाथ पर हनुमान जी का छोटा सा मंदिर स्थापित है। सामने ही टिकटघर बना हुआ है। मुख्य द्वार के ठीक बाहर चाय, पानी, चाट, नींबू पानी, ज्यूस आदि बेचने वालों की भरमार है। मुख्य द्वार से काफी दूर तक चलने के बाद बाजार प्रारम्भ होता है। सड़क के दोनों ओर करीने से बनी एकसार दो मंजिला दुकानें उस समय की शानदार निर्माण-कला का प्रतिनिधित्व करती हैं। हालांकि वर्तमान में इन दुकानों की छत पूर्णतः नष्ट हो चुकी है। केवल चंद दीवारें मौजूद हैं, जिनको देखकर उस समय यहाँ लगने वाले व्यवस्थित बाजार की रौनक का अंदाजा लगाया जा सकता है।



भानगढ़ के किले में गोपीनाथ मंदिर, सोमेश्वर मंदिर, केशवराय मंदिर, मंगला देवी मंदिर आदि मंदिर स्थित हैं। ये सभी मंदिर नागर शैली में बने हुए हैं। किले के उजड़ने व खण्डित होने के बावजूद इन सभी मंदिरों का सही सलामत होना लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है। हालांकि इनमें से कुछ मंदिरों में वर्तमान में कोई मूर्ति प्रतिष्ठित नहीं है। सुंदर नक्काशी युक्त ये मंदिर निर्माण-कला का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। मंदिरों की आंतरिक व बाह्य दीवारों पर बारीकी से तराशी गई कलाकृतियाँ इनकी भव्यता को प्रदर्शित करती हैं।






भानगढ़ किले का शाही महल वास्तव में सात मंजिला बनवाया गया था, परन्तु वर्तमान में इसकी मात्र चार मंजिलें ही मौजूद हैं। खण्डहर में तब्दील हो चुके इस शाही महल के अवशेषों को देखकर ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपने समय में सभी सुख-सुविधाओं से पूर्ण यह महल कितना भव्य और शानदार रहा होगा। महल में जाने वाले रास्ते की खड़ी चढ़ाई तथा विशाल द्वार इसे पर्याप्त सुरक्षा देते रहे होंगे।





किले के पास की पहाड़ी पर एक छतरी भी बनी हुई है, जिसे तांत्रिक की छतरी कहा जाता है। लोगों का मानना है कि तांत्रिक इसी छतरी में तंत्र-मंत्र किया करता था तथा आज भी इस छतरी में उसकी आत्मा का वास है।

किले में स्थित सोमेश्वर मंदिर के पास ही एक प्राकृतिक झरना भी स्थित है। झरने का जल नीचे बने कुण्ड में गिरता है। बरसात के मौसम में इस झरने में जल की पर्याप्त मात्रा रहती है। ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) को यहाँ की गई खुदाई में इसके प्राचीन ऐतिहासिक स्थल होने के पर्याप्त सबूत मिले हैं।

भानगढ़ किले के वीरान भग्नावशेष ही इसे काफी भयावह स्वरूप प्रदान करते हैं। ऐसे में रात के समय किले को घेरे हुए पहाड़ियाँ व पहाड़ी पर तांत्रिक की छतरी, किले के सुनसान खण्डहर तथा उनमें चमगादड़ों की उपस्थिति, रात के सन्नाटे को चीरती झरने से गिरने वाले जल की ध्वनि और बंदरों की चीखें, तेज बहती हवा के कारण वृक्षों की पत्तियों की सरसराहट, सब मिलाकर किले को पूर्णतः भूतिया स्थल घोषित करते से प्रतीत होते हैं। रात्रि में जमीन पर पड़ने वाली ऊँचे पेड़ों की विशाल छाया, बरगद के वृक्षों से लटकी जड़ें, साँय-साँय की ध्वनि के साथ बहती हवा से सूखी पत्तियों का खड़खड़ाना और तभी अचानक से गूँजने वाली बंदरों की तेज चीखें किसी को भी डराने के लिए काफी हैं। ऐसे में झरने से गिरने वाले जल की ध्वनि भी ऐसी प्रतीत होती है, मानो पैरों में घूँघरू बाँधे कोई स्त्री नाचने में मग्न है। बंदरों के दाँतों की किटकिटाहट सुन ऐसा लगता है, मानो किसी पुरुष की क्रूर हँसी गूँज रही है। यहाँ का यह वातावरण स्वतः ही डर का माहौल उत्पन्न कर देता है। यही कारण है कि भानगढ़ का किला विश्व के सबसे खौंफनाक स्थलों में से एक है।

यहाँ आस-पास के गाँवों में रहने वाले लोगों का ऐसा मानना है कि रात के समय यहाँ प्रेतात्माएँ विचरण करती हैं और रह-रहकर तेज चीखें गूँजती हैं। लोगों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति रात को इस किले में प्रवेश करता है, तो वह जीवित वापस नहीं आता है। ना केवल रात बल्कि दिन में भी लोग यहाँ असहजता तथा बेचैनी महसूस करते हैं। बहुत से लोग यहाँ भूत देखे जाने का दावा भी करते हैं। रात के भयावह माहौल में दुर्घटना की आशंका के चलते सूर्यास्त के पश्चात् इस किले में प्रवेश पूर्णतया वर्जित है तथा किले के द्वार पर रात के समय गार्ड तैनात किए गए हैं, ताकि कोई भी व्यक्ति यहाँ अनाधिकृत प्रवेश ना कर पाए।

अपनी हॉन्टेड कथाओं के चलते भानगढ़ का किला ना केवल भारत अपितु विदेशों में भी बहुत विख्यात है। प्रतिवर्ष काफी संख्या में पर्यटक यहाँ आने को उत्सुक रहते हैं। कुछ लोग यहाँ भूतों से संबंधित अपनी जिज्ञासा शांत करने आते हैं, तो कुछ प्रकृति का आनंद प्राप्त करने। यहाँ केवड़े के वृक्ष बहुतायत में हैं तथा जब हवा चलती है तो संपूर्ण वातावरण केवड़े की सुगंध से महक उठता है। मानसून के समय किले के आसपास का क्षेत्र हरियाली की चादर ओढ़ लेता है। ऐसे में पहाड़ियों से घिरे किले से चारों ओर का ऐसा दिलफरेब नजारा दिखाई देता है कि जिसे नजरों में समेट पाना ही मुश्किल है। चारों ओर बिखरी प्रकृति की मनोरम छटा बरबस ही लोगों को आकर्षित कर लेती है।




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अगर मैं अपने अनुभव की बात करूँ तो भानगढ़ किले का भ्रमण मेरे लिए काफी अच्छा और यादगार रहा। मैं, मेरे पति तथा हमारे साथ गए हमारे मित्रों में से किसी को भी यहाँ कुछ भी अजीब महसूस नहीं हुआ। किले के निर्जन खण्डहरों से लेकर यहाँ बने मंदिरों की कलाकृतियाँ तक सब उस समय की शानदार वास्तुकला का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। पहाड़ियों की गोद में बसे इस किले के रमणीय वातावरण में पर्यटकों की खासी आवाजाही है। किसी भूत-प्रेत या आत्मा से तो सामना नहीं हुआ, परन्तु किले का शांत, सुंदर वातावरण मुझे बहुत पसंद आया।

यदि आप जयपुर, अलवर या इनके आसपास के क्षेत्र के निवासी हैं और आपको हॉन्टेड स्थलों पर जाना पसंद है या आप किसी हॉन्टेड जगह के वातावरण को महसूस करना चाहते हैं, तो आप भानगढ़ किले का भ्रमण कर अपनी जिज्ञासा शांत कर सकते हैं। यह देखना रुचिकर होगा कि आपको वहाँ भूतों या आत्माओं की उपस्थिति महसूस होती है या फिर मेरी तरह वहाँ के शांत, सरस वातावरण में खोकर रह जाते हो।

13 टिप्‍पणियां:

  1. भावानुकूल भाषा के माध्यम से उच्च स्तरीय ज्ञानवर्धक लेख।

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  2. शानदार वर्णन तस्वीरों के साथ

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  3. भटकती आत्माओं का शानदार वर्णन 👌👌

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  4. बेहतर शब्दचित्र मय भावाभिव्यक्ति।

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