मंगलवार, 2 मार्च 2021
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भारत में रहस्यमयी सुरंग युक्त सबसे बड़ी व गहरी बावड़ी : चाँद बावड़ी (आभानेरी)
हैलो दोस्तों,
राजस्थान की शुष्क जलवायु में जल की कमी की समस्या के समाधान हेतु प्राचीन काल से ही जल संरक्षण की तकनीकें अपनाई जाती रही हैं। विभिन्न जिलों में बावड़ी, टांके, जोहड़ जैसी जल संरक्षण करने वाली संरचनाओं का पाया जाना इसका उदाहरण है। राजस्थान के दौसा जिले में जयपुर-आगरा मार्ग पर स्थित आभानेरी गाँव में राजस्थान की सबसे प्राचीन बावड़ियों में से एक चाँद बावड़ी स्थित है। yatrafiber के आज के ब्लॉग में मैं चाँद बावड़ी भ्रमण के अनुभव साझा करना चाहूँगी।
चाँद बावड़ी जाने के लिए नजदीकी हवाईअड्डा जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, जो कि इससे लगभग 95 किमी दूर स्थित है। जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन से भी इसकी दूरी लगभग 95 किमी ही है। जयपुर से निजी वाहन करके चाँद बावड़ी आसानी से पहुँचा जा सकता है।
दौसा जिले का आभानेरी गाँव अपनी ऐतिहासिक धरोहर चाँद बावड़ी के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। चाँद बावड़ी का निर्माण निकुंभ राजवंश के राजा चाँद(चंद्र) ने 8वीं-9वीं शताब्दी में करवाया था तथा उनके नाम पर ही इसे चाँद बावड़ी के नाम से जाना जाता है। चाँद बावड़ी के बारे में यह किवदंती भी प्रसिद्ध है कि इसका निर्माण मात्र एक रात में भूत-प्रेतों द्वारा किया गया था।
चाँद बावड़ी का प्रवेश-द्वार उत्तर दिशा की तरफ है। मंडप से अंदर प्रवेश कर बरामदों के पास से होकर चाँद बावड़ी के पास पहुँचते ही वहाँ का दृश्य देखकर पर्यटक बिल्कुल चकित रह जाते हैं। क्योंकि चाँद बावड़ी तस्वीरों में जितनी सुंदर दिखाई देती है, वास्तव में उससे कहीं ज्यादा आकर्षक है।
35 मीटर चौड़ी तथा 19.5 मीटर गहरी, 13 मंजिला चाँद बावड़ी देश की सबसे बड़ी व गहरी बावड़ी है। नीचे उतरने के लिए इसमें तीन तरफ से दोहरे सोपान(सीढ़ियाँ) की व्यवस्था है। लगभग 3500 सीढ़ियाँ नीचे उतरने हेतु बनवाई गई हैं। सममितीय त्रिकोणीय रूप से व्यवस्थित ये सीढ़ियाँ बावड़ी को भव्य स्वरूप प्रदान करती हैं। इन सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है कि इनसे नीचे जाने वाला व्यक्ति इनकी भूलभुलैया में इस कदर खो जाता है कि वह चाहकर भी वापस उन सीढ़ियों से ऊपर नहीं आ सकता, जिनसे होकर वह नीचे गया था। चाँद बावड़ी की शानदार वास्तुकला को देखकर पर्यटक दाँतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर हो जाते हैं।
तीन तरफ सीढ़ियों के अतिरिक्त चौथी तरफ यानि उत्तरी भाग में स्तंभों पर आधारित एक बहुमंजिला दीर्घा बनाई गई है। इसमें नीचे की तरफ दो मंडपों में महिषासुरमर्दिनी तथा गणेश जी की सुंदर प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गई हैं। इन प्रतिमाओं का मुख बावड़ी की तरफ है। भारतीय संस्कृति में जल स्रोतों को विष्णु जी के निवास स्थल क्षीरसागर स्वरूप माना जाता है, अतः विष्णु जी की प्रतिमा भी इसकी निचली मंजिल के बरामदे के अंदर स्थापित की गई है। परन्तु वर्तमान में चाँद बावड़ी में नीचे जाना या सीढ़ियाँ उतरना पर्यटकों के लिए पूर्णतया वर्जित है। अतः विष्णु जी की प्रतिमा के दर्शन कर पाना संभव नहीं है। भले ही बावड़ी में नीचे उतरना मना है, परन्तु ऊपर से देखने पर भी चाँद बावड़ी की बेहतरीन स्थापत्य कला दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ती है।
वर्गाकार स्वरूप में बनी चाँद बावड़ी ऊपर से चौड़ी तथा नीचे से संकरी है। बावड़ी का निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि जल-स्तर कम हो जाने पर भी जल आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, जो कि इसकी उत्कृष्ट जल प्रबंधन प्रणाली को इंगित करता है। जल निकालने वाला यंत्र भी इस प्रकार से व्यवस्थित किया गया है कि बहुत ध्यान से देखने पर ही दिखाई देता है। इतनी खूबसूरत तथा उत्तम तकनीक से बनी बावड़ियाँ कम ही देखने को मिलती हैं।
चाँद बावड़ी चाँदनी रात में दूधिया सफेद रंग में चमकती है, इसी कारण इसे अंधेरे-उजाले की बावड़ी भी कहा जाता है। इसके उत्तरी भाग की दीर्घा के अंदर नृत्य कक्ष तथा एक गुप्त सुरंग भी बनी हुई है। यह सुरंग लगभग 17 किमी लम्बी है तथा पास के गाँव भांडारेज गाँव में निकलती है। संभवतः इसका उपयोग राजा तथा उसकी सेना द्वारा युद्ध व आपातकाल के समय किया जाता था।
चाँद बावड़ी के चारों तरफ स्तंभ युक्त बरामदे बने हुए हैं। इन बरामदों में बहुत सी खण्डित परन्तु शानदार नक्काशी युक्त देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ, स्तंभ तथा अन्य मूर्तियाँ रखी हुई हैं। बावड़ी के चारों तरफ ऊँची चारदीवारी निर्मित की गई है, जो इसे सुरक्षित स्वरूप प्रदान करती है। यह चारदीवारी, बरामदे तथा प्रवेश-द्वार बावड़ी के समकालीन नहीं हैं, इन्हें बाद में बनवाया गया है। वर्तमान में बावड़ी को लोहे की रेलिंग लगाकर सुरक्षित कर दिया गया है। इस रेलिंग के अंदर जाना निषेध है।
बावड़ी की चारदीवारी में ही एक मंदिर भी स्थित है। हमारे देश में निर्माण कार्य प्रारंभ करने से पूर्व ईश-प्रतिमा स्थापित करने की परम्परा रही है, ताकि निर्माण कार्य में कोई विघ्न ना आए। अतः चाँद बावड़ी के निर्माण के समय यहाँ भी हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की गई थी, जिसे बाद में मंदिर का स्वरूप दे दिया गया।
बावड़ी में जल की उपलब्धता तथा हवादार बरामदे यहाँ के वातावरण को शीतल बनाते हैं। प्राचीन समय में बनी इस बेजोड़ कला युक्त चाँद बावड़ी के अनूठे सौंदर्य से प्रभावित होकर यहाँ कई फिल्म निर्माताओं ने अपनी फिल्मों की शूटिंग की है। एक तरफ हवादार गलियारों, शानदार मंडपों तथा सुंदर स्थापत्य वाली 13 मंजिला दीर्घा तथा तीन तरफ एकसार सीढ़ियों युक्त ऊपर से नीचे संकरी होती जाती चाँद बावड़ी का आकर्षण इसे घंटों निहारने के साथ-साथ यह सोचने पर भी मजबूर कर देता है कि कैसे जल प्रबंधन की श्रेष्ठ तकनीक युक्त इस अप्रतिम कला वाली बावड़ी के निर्माण की कल्पना की गई होगी।
चाँद बावड़ी के पश्चिम में हर्षद माता का मंदिर भी स्थित है, जो कि बावड़ी का समकालीन है। इसका निर्माण भी राजा चाँद के द्वारा 8वीं-9वीं शताब्दी में करवाया गया था। यह पूर्वाभिमुख मंदिर दोहरी जगती पर स्थित है। मंदिर का निर्माण महामेरू शैली में करवाया गया है। इसकी छत गुम्बदाकार है। मंदिर में पंचरथ गर्भगृह तथा स्तंभों पर आधारित मंडप स्थित है। इसकी बाहरी दीवारों पर ताखों में हिन्दू देवी-देवताओं की बेहद सुंदर प्रतिमाएँ उत्कीर्णित की गई हैं। इसके अतिरिक्त धार्मिक व लौकिक जीवन को दर्शाती चित्ताकर्षक प्रतिमाएँ उकेरी गई हैं। मंदिर की दीवारों पर सूर्यमुखी के पुष्प बने हुए हैं। सुंदर नक्काशी युक्त इस मंदिर से एक अभिलेख भी प्राप्त हुआ है, जिसमें इसे हरसिद्धि माता मंदिर कहा गया है।
प्राचीन समय में इस मंदिर में हर्षद माता की पूर्णतया नीलम पत्थर से बनी 6 फुट ऊँची प्रतिमा स्थापित थी, जो कि सन् 1968 में चोरी हो गई। यहाँ के निवासियों का कहना है कि माताजी गाँव की रक्षा करती थीं तथा आने वाली आपदाओं के प्रति ग्रामवासियों को पहले ही सचेत कर दिया करती थीं। मंदिर में वर्तमान में माताजी की जो मूर्ति है, वह ग्रामवासियों द्वारा ही स्थापित की गई है।
उत्तम स्थापत्य कला युक्त इस मंदिर को भी मोहम्मद गजनवी का आक्रमण झेलना पड़ा। मोहम्मद गजनवी द्वारा आक्रमण के समय मंदिर को काफी क्षति पहुँचायी गई, बहुत सी मूर्तियाँ खंडित कर दी गईं। बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। परन्तु फिर भी मंदिर की खंडित अवस्था तथा चाँद बावड़ी के बरामदों में रखी गई खंडित प्रतिमाएँ आक्रमणकारियों की क्रूर मनोदशा का प्रमाण प्रस्तुत करती हुई सी प्रतीत होती हैं। खंडित अवस्था में भी प्रतिमाओं की अद्भुत नक्काशी में उस समय के पूर्णस्वरूप मंदिर की महिमा की झलक देखी जा सकती है।
वर्तमान में हर्षद माता मंदिर तथा चाँद बावड़ी दोनों ही पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन हैं। प्रतिवर्ष काफी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक जल संरक्षण के इस अनोखे उदाहरण तथा हर्षद माता मंदिर के दर्शन हेतु आते हैं।
यदि आप ऐतिहासिक स्मारकों तथा स्थापत्य कला में रुचि रखते हैं, तो आपको चाँद बावड़ी देखने अवश्य जाना चाहिए। यकीनन ऐसी व्यवस्थित ज्यामितीय आकार वाली भव्य, शानदार बावड़ी देख आप अचरज से भर जाएँगे तथा कला का यह उत्कृष्ट नमूना आपके द्वारा देखी गई सबसे खूबसूरत ऐतिहासिक धरोहरों में से एक होगा।
About Jyoti Dinesh Choudhary
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शानदार नक्काशी का कार्य ओर उतना ही शानदार वर्णन क्या बात है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏
हटाएंबेजोड़ कार्य वास्तुकला और लेखनकला का गजब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏
हटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत ही सुन्दर और सटीक लेखन है।
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद 🙏
हटाएंThis historical blog is very helpful to know about contemporary indain society and culture. A lot of thanks for your work and keep it up. 👍
जवाब देंहटाएंThank you so much 🙏
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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