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बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया (भाग-2)

 हैलो दोस्तों,

Yatrafiber के पिछले ब्लॉग में मैंने वीरता और शौर्य की भूमि रहे चित्तौड़ के किले के बारे में लिखा था। उसी संदर्भ में मैं आगे की जानकारी यहाँ साझा कर रही हूँ।

चित्तौड़ के किले में स्थित सबसे प्रसिद्ध व शानदार स्मारक विजय स्तंभ है। इसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने महमूद खिलजी पर विजय के उपलक्ष में करवाया था। विजय स्तंभ 122 फीट ऊँचा तथा 9 मंजिला स्मारक है। इसकी 8वीं मंजिल तक चढ़ने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं, जबकि 9वीं मंजिल पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ नहीं हैं। विजय स्तंभ नीचे से चौड़ा, बीच में से संकरा तथा ऊपर से पुनः चौड़ा बनाया गया है।


विजय स्तंभ के अंदर व बाहर बेहद शानदार कलाकारी की गई है। इसमें विष्णु जी के अवतार, रामायण व महाभारत के दृश्य आदि सभी को बहुत ही सुंदर तरीके से उकेरा गया है। इसी कारण इसे हिन्दू देवी-देवताओं का अजायबघर तथा भारतीय मूर्तिकला का शब्दकोश भी कहा जाता है। विजय स्तंभ की 9वीं मंजिल पर कीर्ति प्रशस्ति लिखी गई है तथा रानी पद्मिनी का चित्र भी उकेरा गया है। विजय स्तंभ के वास्तुकारों के नाम भी इसकी 5वीं मंजिल पर लिखे गए हैं। विजय स्तंभ की तीसरी मंजिल पर अरबी भाषा में लिखा गया अल्लाह उस समय के शासकों की धार्मिक सद्भावना को दर्शाता है। संपूर्ण विजय स्तंभ पर की गई बारीक व सुंदर कारीगरी उस समय की स्थापत्य कला की उत्कृष्टता को दर्शाती है।


विजय स्तंभ के ऊपर से चित्तौड़ शहर का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। इसके झरोखों से आने वाले शीतल हवा के झोंके मन को तरोताजा कर देते हैं। मेवाड़ के शौर्य का प्रतीक विजय स्तंभ अपनी विशिष्ट कलाकारी से पर्यटकों को सदैव आकर्षित करता रहा है।

चित्तौड़ के किले को देखने आने वाले सैलानियों के कारण यहाँ खाने-पीने की सामग्री बेचने वाले बहुत से लोगों को रोजगार मिला हुआ है। यहाँ लोग चने, भुट्टे, अमरूद, सीताफल, आईसक्रीम, पॉपकॉर्न जैसी बहुत सी खाद्य वस्तुओं का लुत्फ उठाते हुए देखे जा सकते हैं।

विजय स्तंभ के पास ही जौहर स्थल मौजूद है। चित्तौड़ का किला अपने जौहरों के कारण भी जाना जाता है। वीरों की इस भूमि पर तीन बार जौहर हुए हैं।

प्रथम बार सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा आक्रमण किए जाने पर जब राणा रतनसिंह ने केसरिया किया, तब महारानी पद्मिनी ने मेवाड़ की आन की रक्षा हेतु अन्य वीरांगनाओं के साथ जौहर किया था।

दूसरी बार सन् 1534 में बहादुर शाह द्वारा आक्रमण किए जाने पर रानी कर्णवती ने अन्य वीरांगनाओं के साथ जौहर किया था।

तीसरी बार सन् 1567 में अकबर द्वारा आक्रमण किए जाने पर वीर राजपूत पत्ता सिसोदिया की पत्नी फूल कँवर ने अन्य वीरांगनाओं के साथ अग्नि स्नान किया था।


वर्तमान में इस स्थान पर बगीचा बना दिया गया है। पुरातत्त्व विभाग द्वारा इस स्थल की खुदाई करवाई जाने पर यहाँ राख की कई परतें पाई गईं, जो कि वीरांगनाओं के करूण बलिदान को इंगित करती हैं।

यहाँ दो द्वार भी स्थित हैं, जिन्हें महासती द्वार के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि उस समय ये द्वार गुप्त सुरंग द्वारा कुम्भा महल व गौमुख कुंड से जुड़े हुए थे।

(और पढ़ें गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया (भाग-1) )

चित्तौड़ के किले में समिद्धेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर भी स्थित है। मंदिर की बाहरी व भीतरी दीवारों पर बारीकी से की गई कलाकारी बेहद सुंदर दिखाई देती है। मंदिर के गर्भगृह में शिव जी की त्रिमुखी बड़ी प्रतिमा स्थित है। मूर्ति के दाँये व बाँये मुख एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। गर्भगृह में शिवलिंग तथा शिव परिवार को भी स्थापित किया गया है। महादेव की विशाल प्रतिमा के दर्शन अति सुखदायी हैं। इस मंदिर में दो शिलालेख भी स्थापित किए गए हैं। मंदिर के सामने शिव जी के प्रिय वाहन नंदी की मूर्ति बनी हुई है। यहाँ से नीचे गौमुख कुंड का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।




गौमुख कुंड चित्तौड़ के किले में स्थित सबसे सुंदर स्थलों में से एक है। यहाँ गाय के मुख की आकृति बनी हुई है, जिसमें से गिरने वाला प्राकृतिक जल लगातार यहाँ स्थित शिवलिंग का अभिषेक करता रहता है, इसी कारण इसे गौमुख कुंड कहा जाता है। कहा जाता है कि रानी पद्मिनी प्रतिदिन यहाँ पूजा-अर्चना करने आया करती थीं।



जल से लबालब भरे विशाल कुंड में बहुत सी मछलियाँ हैं, जिन्हें यहाँ आने वाले लोग चने खिलाते हैं। यहाँ लोग गौमुख से आने वाले प्राकृतिक जल से ही शिव जी का अभिषेक कर पुण्य पाते हैं। पहाड़ियों से घिरे इस पवित्र कुंड का दृश्य बहुत मनमोहक है। यहीं पास ही एक कक्ष में रानी पद्मिनी की प्रतिमा अंकित है, जहाँ लोग उन्हें नमन करते हैं। प्रतिमा के पास ही उस सुरंग का द्वार भी स्थित है, जिससे होकर रानी पद्मिनी कुम्भा महल से यहाँ तक आया करती थीं। वर्तमान में सुरंग का द्वार पूर्णतया बंद कर दिया गया है। कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि रानी पद्मिनी ने अन्य वीरांगनाओं के साथ इसी सुरंग में जौहर किया था।

चित्तौड़ के किले में बहुत से छोटे-बड़े जलाशय स्थित हैं। इस विशाल किले में कई सारे उद्यान भी मौजूद हैं, जो कि इसकी सुंदरता को और बढ़ा देते हैं। यहाँ लंगूर भी बड़ी तादात में पाए जाते हैं। घूमने आने वाले लोग लंगूरों को चने, प्रसाद, फल, बिस्किट आदि खिलाते हैं। चित्तौड़ के किले में सीताफल के वृक्ष भी बहुत अधिक संख्या में लगे हुए हैं, जिनसे प्रतिवर्ष सीताफलों की भारी मात्रा प्राप्त होती है। इन सीताफलों को निर्यात किया जाता है।

चित्तौड़ के किले में कालिका माता का बहुत प्राचीन मंदिर भी स्थित है। इतिहासकारों के मुताबिक प्रारंभ में यह मंदिर सूर्यदेव को समर्पित था। मंदिर की बाह्य दीवारों, गर्भगृह की दीवार आदि पर अंकित सूर्यदेव की छवियाँ इस बात को प्रमाणित करती हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण के समय मंदिर को क्षति पहुँचाने के साथ-साथ सूर्यदेव की मूर्ति को भी खंडित कर दिया था। काफी समय तक वीरान रहने के बाद इस मंदिर में कालिका माँ की मूर्ति स्थापित की गई।

ऊँचे चौक पर बना हुआ माँ काली का यह मंदिर यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है। आक्रमण व क्षति झेलने के बाद भी मंदिर के अंदर व बाहरी दीवारों पर किया गया सुंदर शिल्प कार्य दर्शनीय है।

मंदिर परिसर में ही शिव जी को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी स्थित है। यहाँ भैरव बाबा को भी स्थापित किया गया है। परिसर में मौजूद प्राचीन बड़े वटवृक्ष पर लोग इच्छापूर्ति हेतु मौली का धागा बाँधते हुए देखे जा सकते हैं।

महारानी पद्मिनी का महल चित्तौड़ के किले के सबसे सुंदर महलों में से एक है। सफेद रंग का यह महल जलाशय के बीच में स्थित है। महल तक जाने के लिए नाव का उपयोग किया जाता था। यह महल रानी पद्मिनी का पसंदीदा स्थल था, जहाँ वे काफी समय व्यतीत किया करती थीं। इसे जनाना महल भी कहा जाता है। मलिक मोहम्मद जायसी की पुस्तक पद्मावत के अनुसार जब अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी को देखा था, तब वे इसी महल की सीढ़ियों पर खड़ी थीं तथा सामने के मरदाना महल में लगे दर्पण में उनकी झलक दिख रही थी, जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने देखा था। दर्पण में प्रतिबिंब दिखने के बावजूद भी पीछे मुड़ने पर सीधे महल की सीढ़ियाँ दिखाई नहीं देती हैं। हालांकि उस समय तक दर्पण का आविष्कार नहीं हुआ था, अतः यह बात काल्पनिक ही प्रतीत होती है।




पहले मरदाना महल में प्रतीक के तौर पर दर्पण लगे हुए थे, जिनमें यहाँ आने वाले सैलानी पद्मिनी महल की सीढ़ियों का प्रतिबिंब उत्सुकता से देखा करते थे। परन्तु कुछ समय पूर्व किसी फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ को लेकर विवाद होने पर अब वे प्रतीकात्मक दर्पण हटा दिए गए हैं।

यहाँ एक सुंदर उद्यान तथा पुष्पवाटिका भी स्थित है। इस उद्यान में गुलाब के फूलों की बहुत सी किस्में लगाई गई हैं। छोटे से लेकर बड़े तक, कई रंगों वाले गुलाब इस उद्यान में देखे जा सकते हैं। दरवाजे से अंदर प्रवेश करते ही गुलाबों की भीनी महक मन को तरोताजा कर देती है। सैलानी यहाँ बैठकर आराम करना बहुत पसंद करते हैं। उद्यान से फूलों को तोड़ना व घास-स्थल में प्रवेश करना वर्जित है।



चित्तौड़ के किले में बहुत से फोटोग्राफर भी उपलब्ध हैं, जिनके माध्यम से यहाँ आने वाले सैलानी किले की खूबसूरत यादों को तस्वीरों के रूप में सहेजकर ले जाते हैं। फोटो खिंचवाने के बाद आधे से एक घंटे में उनके प्रिंट उपलब्ध करवा दिए जाते हैं। फोटो के आकर के हिसाब से शुल्क लिया जाता है। यहाँ राजस्थानी पोशाक भी 50-100 रुपये में किराये पर मिलती हैं, जिनको पहनकर फोटो खिंचवाई जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त सजे-धजे घोड़े व ऊँट भी यहाँ उपलब्ध रहते हैं, जिनपर बैठकर फोटो खिंचवाना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है।

किले की पूर्व दिशा में भी एक दरवाजा स्थित है, जिसे सूरज पोल के नाम से जाना जाता है। इस दरवाजे से नीचे मैदान में जाने का रास्ता है। कुछ लोग सूरज पोल को ही किले का मुख्य द्वार मानते हैं।




चित्तौड़ के किले में भगवान आदिनाथ को समर्पित एक भव्य ऐतिहासिक स्मारक कीर्ति स्तंभ भी स्थित है। 22 मीटर ऊँचे इस स्तंभ का निर्माण जैन व्यापारी जीजाजी राठौड़ ने 12वीं शताब्दी में करवाया था। यह सात मंजिला स्तंभ नीचे से चौड़ा तथा ऊपर से कुछ संकरा है। इसपर जैन तीर्थंकरों की सुंदर प्रतिमाएँ बनाई गई हैं। पत्थरों को कुशलतापूर्वक तराशकर की गई सुंदर कलाकारी पर्यटकों को आश्चर्यचकित कर देती है।


अंदर से संकरा होने के कारण कीर्ति स्तंभ के अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं है। तीर्थंकरों तथा जैन धर्म से संबंधित अन्य कलाकृतियों से सजा यह सुंदर स्मारक ऐतिहासिक तथा धार्मिक दोनों दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। कीर्ति स्तंभ के ठीक पास भगवान आदिनाथ को समर्पित एक जैन मंदिर भी स्थित है।

चित्तौड़ के किले में फतेह प्रकाश महल भी स्थित है, जो कि अपनी सुंदरता से पर्यटकों को आकर्षित करता है। इसका अधिकांश हिस्सा वर्तमान में संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। संग्रहालय में रानी पद्मिनी,  मीरा बाई आदि की सुंदर प्रतिमाओं के अतिरिक्त उस समय के अस्त्र-शस्त्र, वस्त्रों तथा अन्य राजसी वस्तुओं का संग्रह किया गया है, जिनसे उस समय के रहन-सहन की झलक मिलती है।

इन सब के अतिरिक्त चित्तौड़ के किले में नीलकंठ महादेव मंदिर, गोरा-बादल की घूमरें, जयमल-पत्ता की हवेलियाँ, खातन रानी का महल, घोड़े दौड़ने के चौगान, भाक्सी, बीका खोह, राव रणमल की हवेली, जटाशंकर महादेव मंदिर, सतबीस देवलां, मोती बाजार, श्रृंगार चौरी जैसी बहुत सी इमारतें, महल व मंदिर स्थित हैं। परन्तु वर्तमान में इनमें से अधिकांश इमारतें खंडहर अवस्था में हैं।

शक्ति व भक्ति के नगर चित्तौड़गढ़ में पहाड़ी पर बसे इस शानदार किले को देखकर मुहणैत नैनसी ने कहा था, "गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया"। वाकई मेवाड़ी राजाओं के शौर्य तथा वीरांगनाओं के जौहर की याद दिलाते चित्तौड़ के किले के विशाल स्वरूप के आगे राजस्थान के बाकी सब किले बहुत छोटे प्रतीत होते  हैं। अपनी शौर्य कथाओं, मातृभूमि प्रेम, विशालता तथा स्थापत्य कला की उत्कृष्टता जैसी खूबियों के चलते चित्तौड़ का किला हमेशा से पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है।

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