आगरा स्थित विश्व का सातवाँ अजूबा : ताजमहल - Yatrafiber

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सोमवार, 18 जनवरी 2021

आगरा स्थित विश्व का सातवाँ अजूबा : ताजमहल

ताजमहल, आगरा

 नमस्कार प्रिय पाठकों,

         Yatrafiber के आज के ब्लॉग में हम विश्व के सात अजूबों में शामिल प्रेम के प्रतीक ताजमहल की यात्रा के बारे में बात करेंगे। ताजमहल उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में यमुना नदी के किनारे बना हुआ है। आगरा भारत के लगभग सभी मुख्य शहरों से सड़क मार्ग तथा रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। ताजमहल आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन से महज 3 किमी की दूरी पर स्थित है। आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन से ऑटोरिक्शा या ताँगे के द्वारा आसानी से यहाँ पहुँचा जा सकता है। आगरा वायुमार्ग द्वारा दिल्ली तथा जयपुर से जुड़ा हुआ है। आगरा के पंडित दीनदयाल उपाध्याय हवाईअड्डे से ताजमहल की दूरी लगभग 12 किमी है। यहाँ से आप ताजमहल ऑटोरिक्शा या निजी वाहन करके आसानी से पहुँच सकते हैं।

          अकबर के पोते तथा जहाँगीर के पुत्र मुगल बादशाह शाहजहाँ के द्वारा अपनी प्रिय बेगम मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण करवाया गया था। अतः ताजमहल वास्तव में एक मकबरा है, जहाँ मुमताज बेगम व शाहजहाँ दफन हैं। मुमताज का वास्तविक नाम अर्जुमंद बानो था। शाहजहाँ ने ही उन्हें प्रेम से मुमताज महल नाम दिया था। मुमताज, शाहजहाँ की सबसे प्रिय बेगम थी तथा वह शाही यात्राओं पर भी मुमताज को साथ रखता था। सन् 1631 में अपनी 14वीं संतान को जन्म देते समय मुमताज की मृत्यु हो गई। तब शाहजहाँ ने मुमताज की याद में ताजमहल के निर्माण का निर्णय लिया।

                                                      


          ताजमहल का निर्माण कार्य सन् 1631 में प्रारंभ हुआ। उस्ताद अहमद लाहौरी इसके मुख्य कारीगर थे तथा उनके साथ 37 कुशल कारीगरों का एक दल बनाया गया था, जिन्हें बगदाद, बुखारा, तुर्की जैसे स्थानों से विशेष तौर पर बुलवाया गया था। इस दल के निर्देशन में 20000 मजदूरों द्वारा ताजमहल का निर्माण किया गया। ताजमहल के निर्माण के लिए संगमरमर राजस्थान के मकराना से मँगवाया गया था। इसमें 28 तरह के बहुमूल्य रत्न तथा पत्थर जड़े गये थे, जिन्हें एशिया के विभिन्न स्थानों से मँगवाया गया था। परिवहन कार्य के लिए लगभग 1000 हाथियों का उपयोग किया गया था। 22 वर्ष के अथक परिश्रम के परिणामस्वरूप सन् 1653 में कला का यह बेजोड़ नमूना बनकर तैयार हुआ।

                                           


          कहा जाता रहा है कि ताजमहल का निर्माण पूर्ण हो जाने के पश्चात शाहजहाँ ने इसे बनाने वाले सभी मजदूरों के हाथ कटवा दिए थे, ताकि वे भविष्य में फिर ऐसी खूबसूरत इमारत का निर्माण नहीं कर सकें। परन्तु इस बात का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। ऐसा भी कहा जाता है कि शाहजहाँ ने सभी मजदूरों से इकरारनामा लिखवा लिया था कि वे भविष्य में ऐसी किसी भव्य इमारत का निर्माण नहीं करेंगे। एक कथा यह भी प्रचलित है कि शाहजहाँ इस ताजमहल के ठीक विपरीत एक काला ताजमहल भी बनवाना चाहता था, परन्तु ताजमहल का निर्माण पूर्ण होते ही शाहजहाँ को उसी के पुत्र औरंगजेब ने कैद कर लिया था और शाहजहाँ का यह सपना अधूरा ही रह गया था। यद्यपि इस बात का भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि वास्तव में यहाँ एक शिव मंदिर था, जिसका नाम था - तेजोमहालय। इसी को बाद में ताजमहल का रूप दिया गया।

          ताजमहल को देखने के लिए बाहर स्थित टिकट काउंटर से टिकट लेना पड़ता है। टिकट  का मूल्य 250 रुपये प्रति व्यक्ति है। ताजमहल का प्रवेश-द्वार स्थापत्य कला का सुंदर नमूना है। यह लाल बलुआ पत्थर तथा संगमरमर से बना हुआ है। इसपर कुरान की आयतों को बड़ी ही कुशलता से इस प्रकार लिखा गया है कि ऊपर से नीचे तक सभी अक्षरों का आकर बिल्कुल समान दिखाई देता है। इसमें सामने दोनों तरफ दो छतरियाँ बनाई गई हैं तथा बीच में छोटी-छोटी 11 छतरियाँ बनाई गई हैं।

                                                         


          मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करने पर ताजमहल तथा मुगल बगीचे का विहंगम दृश्य सहज ही मन मोह लेता है। सफेद संगमरमर को तराशकर बनाए गए ताजमहल की उजली चमक देखते ही बनती है। वैसे ताजमहल का बदलता रंग भी दर्शकों को अचंभे से भर देता है। सूर्योदय के समय यह गुलाबी आभा बिखेरता नजर आता है, तो दिन के उजाले में दूधिया सफेदी से जगमगाता है, वहीं चाँदनी रात में हल्के नीले रंग में रंगकर मन मोहता है।

                                                     


          यहाँ बने बगीचे ताजमहल की खूबसूरती को और बढ़ा देते हैं। प्रारंभ में पूर्णतः मुगल शैली में बने इन बगीचों में ब्रिटिश काल में परिवर्तन कर दिया गया था, जोकि आज भी दृष्टिगोचर होता है। यहाँ मुख्य पथ के दोनों ओर कुल मिलाकर चार बगीचे हैं। इन बगीचों में सुंदर घास, फूलदार पौधे तथा बड़े वृक्ष लगे हुए हैं। मुख्य पथ पर फंव्वारे भी लगाए गए हैं जोकि बगीचे की सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं। ताजमहल के ठीक सामने एक छोटा तालाब बनवाया गया है। इस तालाब के पानी में ताजमहल का प्रतिबिंब दिखाई देता है, जिससे मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य उत्पन्न होता है।

 

         उत्तम गुणवत्ता के बहुमूल्य सफेद संगमरमर से बनी यह अद्भुत ऐतिहासिक इमारत लाल बलुआ पत्थर से बने चबूतरे पर बनी हुई है। इसके मध्य में एक बड़ा गुम्बद बना हुआ है। इस गुम्बद पर एक सुंदर कलश स्थापित है। कलश पर चाँद की आकृति बनी हुई है। 1800 ईस्वी तक यह कलश सोने का हुआ करता था, परन्तु बाद में उसके स्थान पर काँसे का कलश स्थापित किया गया, जोकि वर्तमान में भी स्थित है। इस गुम्बद के चारों तरफ छतरियाँ बनी हुई हैं। ताजमहल में चारों दिशाओं में चार दरवाजे बने हुए हैं। वर्तमान में दक्षिणी द्वार से प्रवेश दिया जाता है। मुख्य मकबरे में जूते-चप्पलों के साथ प्रवेश वर्जित है। अतः या तो जूते-चप्पल बाहर उतारने होते हैं, अन्यथा जूते-चप्पलों को पॉलीथीन से बने कवर द्वारा ढ़ककर अंदर जा सकते हैं। ये पॉलीथीन कवर ताजमहल के बाहर 15-20 रुपये में आसानी से मिल जाते हैं।

                                                        


          ताजमहल मुगल तथा हिंदू वास्तुकला के संगम का अप्रतिम उदाहरण है। इसकी दीवारों पर सुंदर लताएँ, फूल-पत्ते आदि तराशे गए हैं। अत्यंत बारीकी से की गई नक्काशी, पच्चीकारी व जड़ाऊ कार्य इसे भव्यता प्रदान करते हैं। ताजमहल के अंदर मुमताज बेगम तथा शाहजहाँ की कब्रें बनी हुई हैं, जिनपर बहुत सुंदर कारीगरी की गई है। कब्रों के चारों तरफ बहुत ही कुशलता से तराशी गयी बारीक कार्य वाली जालियाँ लगी हुई हैं। मुमताज व शाहजहाँ की वास्तविक कब्रें नीचे तहखाने में स्थित हैं, ऊपरी कक्ष में केवल उनकी नकल रखी गयी है। इस कक्ष के ठीक मध्य में एक अष्टधातु की जंजीर लटक रही है, जिसपर अंग्रेजों ने एक दीप स्थापित किया था। ताजमहल के चारों कोनों पर चार मीनारें बनवाई  गई हैं। प्रत्येक मीनार पर एक छतरी बनी हुई है। ताजमहल की चारों मीनारें थोड़ा बाहर की तरफ झुकी हुई हैं, ताकि भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदा आने पर यदि ये गिरें भी तो मुख्य मकबरे को कोई नुकसान ना पहुँचे। ताजमहल में एक मस्जिद भी स्थित है, जिसका निर्माण लाल बलुआ पत्थरों द्वारा किया गया है।

                                                              


         

1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों ने इस अद्वितीय इमारत को बहुत नुकसान पहुँचाया था। ताजमहल में जड़े गए बहुत से बहुमूल्य रत्न अंग्रेजों द्वारा निकाल लिए गए। सर्वप्रथम सन् 1942 में तथा फिर सन् 1965 व सन् 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध के समय ताजमहल के गुम्बद को सुरक्षा कारणों से बाँस की बल्लियाँ लगाकर हरे कपड़े से ढ़क दिया गया था, ताकि दुश्मन के बमवर्षक विमानों की नजर से इसको बचाया जा सके। मथुरा तेलशोधक कारखाने से निकलने वाले धुँए से होने वाले प्रदूषण ने भी ताजमहल को बहुत नुकसान पहुँचाया है। इस धुँए के कारण ताजमहल का रंग पीला पड़ने लगा था, जिसकी सफाई करवाई गई। प्रदूषण से होने वाली अम्ल वर्षा से ताजमहल के संगमरमर का भी संक्षारण होता है। ताजमहल की सुरक्षा के लिए प्रदूषण पर नियंत्रण करना अति आवश्यक है। वर्तमान में ताजमहल के आस-पास के क्षेत्र में प्रदूषणकारी वाहनों के चालन पर पूर्णतः रोक है।

          देशी-विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद, बेमिसाल मोहब्बत का प्रतीक ताजमहल विश्व के सात आश्चर्यों में वर्तमान में प्रथम स्थान रखता है। सन् 1983 में ताजमहल को यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया था। ताजमहल के सौंदर्य का दीदार करने प्रतिवर्ष 20 से 40 लाख पर्यटक आगरा आते हैं, जिनमें से लगभग 30% विदेशी तथा 70% देशी पर्यटक होते हैं।

          ताजमहल से प्रेरित होकर विश्व में अन्य कई इमारतों का निर्माण किया गया है। भारत के औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में बीबी का मकबरा, कलकत्ता में विक्टोरिया मेमोरियल स्मारक, ताजमहल बांग्लादेश, न्यूजर्सी में ट्रंप महल, चीन के शेनज़ेन में विंडो ऑफ द वर्ल्ड थीम पार्क में बनी ताजमहल प्रतिकृति, विस्कज़िन स्थित ट्रिपोली श्राइन मंदिर आदि इसके उदाहरण हैं, परन्तु इनमें से कोई भी इमारत वास्तविक ताजमहल जैसी सुंदरता नहीं पा सकी।

          ताजमहल के आस-पास के क्षेत्र में बहुत से अच्छे होटल उपलब्ध हैं, जहाँ पर्यटक रूक सकते हैं। यहाँ पास में बाजार भी स्थित है, जहाँ से लोग ताजमहल की प्रतिकृतियों को निशानी के तौर पर तथा अपने प्रियजनों के लिए उपहार के तौर पर ले जाना पसंद करते हैं। यहाँ वस्त्र, बैग, पर्स, चूड़ियाँ तथा अन्य बहुत सी वस्तुएँ भी उचित दाम पर मिल जाती हैं। यहाँ आने वाले लोग आगरा का प्रसिद्ध पेठा भी अवश्य खरीदते हैं, जोकि विभिन्न स्वाद में उपलब्ध है। वैसे आगरा की चाट भी काफी प्रसिद्ध है, तभी तो यहाँ आने वाले पर्यटक इसका लुत्फ उठाए बिना नहीं रहते।

          ताजमहल की खूबसूरती यहाँ आने वाले पर्यटकों को सहज ही अपने मोहपाश में जकड़ लेती है। इस अनुपम इमारत की छवि को लोग तस्वीरों के जरिये अपने साथ ले जाते हैं। यहाँ के लोग ठीक ही कहते हैं,"लोग जब यहाँ आकर जाते हैं तो ताज को अपने दिल में लेकर जाते हैं।" वास्तव में ताजमहल को देखने वाला हर व्यक्ति इसकी खूबसूरती का कायल हो जाता है। अद्वितीय, अनुपम, अद्भुत, खूबसूरत जैसे शब्द मिलकर भी ताजमहल का वर्णन करने में अक्षम से प्रतीत होते हैं। मुझे दो बार ताजमहल के दीदार का मौका मिला है तथा भविष्य में भी मैं पुनः सपरिवार ताज को निहारना चाहूँगी

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