राजस्थान में इतना सुन्दर झरना : भँवर माता (प्रतापगढ़) - Yatrafiber

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शनिवार, 9 जनवरी 2021

राजस्थान में इतना सुन्दर झरना : भँवर माता (प्रतापगढ़)

भँवर माता (भ्रमर माता)


नमस्कार दोस्तों,

Yatrafiber के आज के ब्लॉग में मैं छोटी सादड़ी में स्थित भँवर माता मंदिर के बारे में बताना चाहूँगी।

भँवर माता मंदिर राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में छोटी सादड़ी तहसील में निम्बाहेड़ा-प्रतापगढ़ मार्ग पर स्थित है। यह मंदिर मध्यप्रदेश के नीमच जंक्शन रेलवे स्टेशन से लगभग 24 किमी दूर स्थित है। चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी 64 किमी तथा चित्तौड़गढ़ बस स्टेण्ड से इसकी दूरी लगभग 66 किमी है।

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चारों ओर पहाड़ों की श्रृंखलाओं से घिरे प्राकृतिक स्थल पर यह मंदिर स्थित है। एक बड़े चबूतरे पर भँवर माता(भ्रमर माता) का प्राचीन मंदिर बना हुआ है। प्राचीन समय में यहाँ घना जंगल था और उसमें बहुत से भँवर होने के कारण देवी का नाम भँवर माता पड़ा। भँवर माता को देवी दुर्गा का ही रूप माना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा यशगुप्त के पुत्र गौरी ने किसी प्राचीन भग्न(खण्डित) हो चुके देवस्थान के स्थान पर करवाया था। मंदिर के मुख्य द्वार पर दो बड़ी गज-प्रतिमाएँ लगी हुई हैं। प्रारंभ में यहाँ देवी के पदचिन्हों की ही पूजा की जाती थी, बाद मेेंं देवी की प्रतिमा स्थापित की गई। मंदिर के गर्भगृह के सामने देवी के वाहन की मूर्ति, त्रिशूल तथा एक बड़ा वृक्ष स्थित है। यहाँ पास में ही एक शिव मंदिर भी स्थित है।

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भँवर माता मंदिर से संवत् 547 का एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ है। इस शिलालेख में माँ पार्वती की भगवान शिव के प्रति अगाध श्रद्धा तथा माता पार्वती द्वारा शिवजी का आधा रूप बनने का वर्णन किया गया है। प्रसिद्ध पुरातत्वविद आर. सी. अग्रवाल के अनुसार इस शिलालेख में माता दुर्गा द्वारा महिसासुर नामक राक्षस का संहार करने हेतु भयंकर सिंहों के रथ पर सवार होने का वर्णन किया गया है। इस प्रकार यह मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है।

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यहाँ काफी संख्या में श्रद्धालु माताजी के दर्शन हेतु आते हैं, विशेष तौर पर नवरात्रों में दर्शनार्थियों की भारी भीड़ होती है। लोग यहाँ मन्नत माँगते हैं तथा इच्छा पूर्ण हो जाने पर मंदिर में जीवित मुर्गा छोड़कर चले जाते हैं। मंदिर परिसर तथा इसके आसपास ऐसे काफी मुर्गे विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहाँ मुर्गों तथा अन्य पशुओं की बलि भी दी जाती थी। मंदिर के गर्भगृह के सामने बने दो खंभे इस बात का प्रमाण हैं, परन्तु वर्तमान में ऐसा नहीं किया जाता है। मंदिर परिसर में लंगूरों को भी काफी संख्या में देखा जा सकता है। मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं से इन्हें प्रसाद व भोजन मिलता रहता है। मंदिर का शांत व सुरम्य प्राकृतिक वातावरण मन को असीम शांति देने वाला है।




माताजी के भक्तों के अतिरिक्त यहाँ मानसून के समय पर्यटकों की भी भारी भीड़ रहती है, जिसका कारण है - वर्षाकाल में यहाँ बहने वाला सुंदर झरना। 70 फीट की ऊँचाई से गिरने वाला यह झरना लोगों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है। बारिश के कारण जब तालाब पूरा भर जाता है तो एनीकट पर चादर चलने से झरना बहने लगता है।


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हरी-भरी प्राकृतिक वादियों में बहते झरने का लुत्फ उठाने लोग भारी तादात में यहाँ पहुँचते हैं। बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग तक यहाँ झरने के पानी में नहाने का आनंद लेते हुए देखे जा सकते हैं। बहुत से युवा समूह भी यहाँ पिकनिक मनाने आते रहते हैं। कुछ लोग झरने के ऊपर चढ़कर सेल्फी लेते हुए भी देखे जा सकते हैं, जबकि ऐसा करना बेहद जोखिमभरा कार्य है। जरा सी असावधानी पर पैर फिसलकर नीचे गिरने से चोट लगने या जान जाने की संभावना रहती है। अतः इस प्रकार की गलती करने से बचना चाहिए।


इस झरने के नीचे नहाने के लिए पर्याप्त जगह मौजूद है। झरने से गिरकर नीचे जमा हुए पानी में लोगों को अठखेलियाँ करना तथा फोटो खिंचवाना बेहद पसंद आता है। झरने का शीतल जल तन-मन को सुकून प्रदान करता है। कुछ लोग झरने में नहाने की बजाय किनारे की चट्टानों पर पानी में पैर डालकर बैठना भी पसंद करते हैं। हरियाली की चादर ओढ़ी हुई प्राकृतिक वादियों में कल-कल बहते झरने का विहंगम दृश्य हर किसी को लुभाता है, तभी तो यहाँ बहुत से फोटोशूट भी होने लगे हैं।


झरने से गिरने वाला पानी नीचे स्थित संकरी घाटी में बहते हुए आगे चला जाता है। मंदिर के पीछे की तरफ कुछ दूरी चलने पर सीढ़ियों से नीचे उतरकर भी एक देवस्थान स्थित है। श्रद्धालु यहाँ भी दर्शन का लाभ पाते हैं। झरने से आने वाले पानी को यहाँ से बहकर जाते हुए देखा जा सकता है। यहाँ स्थित ऊँचे-घने वृक्षों के कारण सूर्य की धूप भी नीचे धरातल तक नहीं पहुँच पाती है।





बहुत से लोग भँवर माता आकर प्रसादी भी करते हैं। यहाँ आसपास खाने-पीने के सामान, प्रसाद व खिलौनों की कुछ छोटी-मोटी दुकानें भी स्थित हैं। झरने के शीतल जल में स्नान कर माताजी के दर्शन करना आत्मिक सुख देने वाला होता है। शहरी भीड़भाड़ से दूर सहज प्राकृतिक वातावरण वाला यह स्थल श्रद्धालुओं तथा प्रकृति प्रेमियों के बीच खासा प्रसिद्ध है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह,आप यहां भी गए। बहुत खूबसूरत जगह । हमने अनुभूत किया और आपने अनुभूति को अभिव्यक्ति। Very good

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  2. हाँ 2 बार गए हैं हम, बहुत अच्छा स्थान है। आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏

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  3. यह बहुत ही अच्छा स्थान है माता जी का यह एक शक्तिपीठ स्थान है जो बहुत ही चमत्कारी है यहां मालवा और मेवाड़ के दूर-दूर से लोग आते हैं यहां सावन में बहुत ही अच्छा नजारा रहता है

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