माउंट आबू यात्रा PART-3
Mount Abu ,Rajasthan Tourism: Travel Guide Mount Abu
सभी पाठकों को नमस्कार,
हमारी माउंट आबू यात्रा के प्रथम दिवस व द्वितीय दिवस के बारे में मैं yatrafiber के पिछले ब्लॉग्स में लिख चुकी हूँ, आगे की यात्रा के अनुभव मैं इस ब्लॉग द्वारा साझा कर रही हूँ....
अगले दिन यानि 20 सितम्बर, 2020 को सुबह वही 9 बजे तक हम तैयार हो गए तथा फूड इन में नाश्ता करके टॉड रॉक घूमने चल दिए। नक्की झील के पास से एक रास्ता है, जिसपर कुछ दूरी तय करने के बाद टॉड रॉक के लिए सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। सीढ़ियाँ चढ़ते समय आस-पास के क्षेत्र का सुंदर नजारा दिखाई देता है। बीच में हनुमान जी का एक छोटा सा मंदिर भी स्थित है। मंदिर से थोड़ा और आगे चढ़ने के पश्चात सीढ़ियों के स्थान पर पहाड़ी उबड़-खाबड़ रास्ता है, जिसपर चढ़ाई करते समय माउंटेन ट्रेकिंग का एहसास होता है।
माउंट आबू यात्रा PART-1
माउंट आबू यात्रा PART-2
सबसे ऊपर जाकर टॉड रॉक स्थित है, जो कि एक बड़े मेंढ़क के आकार की चट्टान है। इस चट्टान को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि एक बड़ा मेंढ़क पहाड़ के किनारे बैठकर नीचे स्थित नक्की झील में छलांग लगाने वाला है। बच्चों के साथ चढ़ाई कर हम थक चुके थे, अतः कुछ देर टॉड रॉक के पास ही छाया में बैठकर विश्राम किया। ऊपर एक छोटी सी दुकान भी है, जिसपर पानी, नींबू पानी, चिप्स, कुरकुरे, नमकीन, बिस्किट जैसी चीजें उपलब्ध हैं। हमने भी नींबू पानी का आनंद लिया। बहुत सारे लोग टॉड रॉक के साथ फोटो खिंचवाने में मग्न थे। कुछ देर विश्राम के बाद हम भी इधर-उधर टहलने लगे। इतनी ऊँचाई से नक्की झील की खूबसूरती देखने लायक थी। चट्टान का विचित्र आकार, ऊँचाई से दिखती नक्की झील, चारों तरफ पहाड़ों की हरी-भरी श्रृंखलाएँ तथा उनपर उतरते-चढ़ते बादलों के समूह, प्रकृति की इस सुंदर चित्रकारी के आकर्षण में बँधकर सैलानी यहाँ घंटों बैठना पसंद करते हैं। हमने भी टॉड रॉक के साथ-साथ चारों तरफ के सुंदर दृश्यों की बहुत सी तस्वीरें लीं तथा तकरीबन दो घंटे का समय वहाँ बीताने के बाद नीचे उतरना शुरू किया। उतरना प्रारंभ करते ही बूँदाबाँदी शुरू हो गई, परन्तु मार्ग के किनारे स्थित घने-ऊँचे वृक्षों के कारण मुश्किल से ही कुछ बूँदें हम तक पहुँच पा रही थीं। थोड़ा नीचे आने के बाद बारिश तेज हो गई थी, अतः हमने हनुमान मंदिर में शरण ली। लगभग 15 मिनट बाद बारिश रूक गई तथा हम लोग नीचे उतर गए।
नक्की झील में वाटर रॉलर(जोर्ब बॉल), वाटर बॉल जैसे रोमांचकारी खेल भी उपलब्ध हैं। बीते कल हमने सिर्फ बॉटिंग की थी। अतः आज हम वाटर रॉलर का आनंद लेने पहुँचे। वहाँ पर दोनों पिताओं ने अपने-अपने बच्चों को संभाला और हम दोनों सहेलियों ने वाटर रॉलर में जाने का निर्णय लिया। वाटर रॉलर एक तरह की जलक्रीड़ा है। इसमें प्लास्टिक का एक रॉलर होता है, जिसकी दीवारों को पम्प से हवा भरकर फुलाया जाता है। अंदर से यह खोखला होता है। दोनों तरफ हवा पार होने तथा अंदर आने-जाने के लिए स्थान होता है। इसमें दो या तीन लोग एकसाथ अंदर जा सकते हैं, फिर इस रॉलर को झील के पानी में उतार दिया जाता है। रॉलर का एक सिरा रस्सी से किनारे पर बँधा रहता है। पानी पर तैरते रॉलर के अंदर बैठकर या खड़े होकर उसे तेजी से लुढ़काने में बड़ा मजा आता है। ऐसा करते हुए बचपन में प्लास्टिक की टंकी के अंदर घुसकर उसे लुढ़काने वाले खेल से जुड़ी यादें ताजा हो गईं। कुल मिलाकर हमने वाटर रॉलर में बहुत मस्ती की। इसका शुल्क 200 रुपये प्रति व्यक्ति है तथा छोटे बच्चों को इसमें ले जाना वर्जित है।
दोपहर के भोजन का समय हो गया था। पिछले दिन व सुबह फूड इन रेस्तरां के भोजन का स्वाद हमें काफी पसंद आया, अतः हमने किसी नए विकल्प की जगह वहीं दोपहर का भोजन लिया। इसके बाद निजी वाहन लेकर घूमने चल दिए। माउंट आबू में अर्बुदा देवी का मंदिर है, जो कि बहुत प्रसिद्ध है । यहाँ देवी के नौ अवतारों में से एक कात्यायनी देवी का मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पति का अपमान किए जाने पर अपने पिता से रूष्ट होकर हवन कुंड में कूदने से माता सती की मृत्यु हो गई थी और शिव जी अत्यधिक क्रोध में उनका शव कंधे पर लादकर कैलाश पर्वत ले जा रहे थे, तब शिव जी के क्रोध से होने वाले सृष्टि-विनाश को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की मृत देह के 51 टुकड़े कर दिए थे। ये 51 टुकड़े जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुईं। यहाँ पर माता सती के होंठ गिरे थे, अतः इसे अधर शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है।
पहाड़ी के ऊपर मनोरम वातावरण में स्थित यह सफेद मंदिर बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ता है। मंदिर तक जाने के लिए 365 सीढ़ियाँ चढ़कर जाना होता है। यह मंदिर रॉक-कट मंदिर निर्माण कला का उदाहरण है, क्योंकि इसका निर्माण ठोस चट्टानों को बहुत ही सुंदर तरीके से काटकर किया गया है। यहाँ बहुत सुंदर मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। मंदिर में दूधिया रंग के पानी का एक कुआ भी है, जिसे कामधेनु का रूप माना जाता है। मंदिर के पास ही माताजी की पादुका की भी पूजा होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहीं पर माताजी ने राक्षसों के राजा बासकली को पैरों से दबाकर उसका संहार किया था। अतः यहाँ माताजी की पादुका स्थापित हैं। यहाँ काफी संख्या में भक्त दर्शन हेतु आते हैं, विशेष तौर पर नवरात्रों में यहाँ बहुत भीड़ रहती है। बादल हट जाने से अभी धूप बहुत तेज थी। अतः बच्चों के साथ सीढ़ियाँ चढ़ना संभव ना होने के कारण हमें नीचे से ही माताजी को प्रणाम करके संतोष करना पड़ा।
इसके बाद हम ऋषि वशिष्ठ आश्रम दर्शन हेतु गए। जंगल के घुमावदार सुंदर मार्ग से होकर यहाँ पहुँचा जा सकता है। यह स्थान ऋषि वशिष्ठ की तपोस्थली रही है। कहा जाता है कि यहीं पर ऋषि वशिष्ठ ने भगवान राम को उनके भाईयों समेत ज्ञान दिया था। अतः हिंदुओं के लिए यह स्थान विशेष दर्जा रखता है। यहाँ पर लगभग 700 सीढ़ियाँ नीचे उतरकर भगवान शिव को समर्पित एक सुंदर छोटा मंदिर है। इसके अतिरिक्त भगवान राम, ऋषि वशिष्ठ की भी मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। यहाँ संगमरमर से निर्मित एक बैल के मुख से लगातार जल गिरता रहता है। इस बैल के मुख को भगवान शिव के वाहन नंदी का प्रतीक माना जाता है। इस समय यहाँ परिवार के साथ आए लोगों की बजाय समूह में घूमने आए युवकों की संख्या अधिक थी। वे लोग ऊपर ही अपने नाचने-गाने में व्यस्त थे। बरसात के कारण नीचे जाने वाली सीढ़ियाँ फिसलनभरी थीं तथा हमारे वाहनचालक ने बताया कि शाम का समय होने के कारण सुनसान रास्ते पर भालू आ जाने की भी संभावना रहती है। अतः हमने खतरा ना लेते हुए वापस लौटने का निर्णय लिया। परन्तु यदि आप साफ मौसम में दिन के समय आते हैं, तो नीचे जाकर इस आश्रम को जरूर देखें। यहाँ काफी संख्या में सैलानी आते हैं।
माउंट आबू का यूनिवर्सल पीस हॉल भी काफी प्रसिद्ध है। इसे ऊँ शांति भवन या ब्रह्मकुमारी आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। सफेद रंग के इस विशाल हॉल में लगभग 2000 लोगों के एक साथ बैठने की क्षमता है, परन्तु आश्चर्यजनक रूप से इतने बड़े हॉल में एक भी खंभा नहीं है, बावजूद इसके यह पूर्णतः सुरक्षित है। यहाँ जाने वाले व्यक्तियों को अनुयायियों द्वारा इसके बारे में तथा अध्यात्म के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है। लोग बिना खंभे वाले इस भवन को देखने तथा मन की शांति व अध्यात्म के बारे में जानने हेतु यहाँ आते हैं।
हमने ऊँ शांति भवन को बाहर से ही देखा। क्योंकि हमें उसी दिन वापस जयपुर के लिए निकलना था। रात्रि 10.00 बजे आबूरोड रेलवे स्टेशन से हमारी ट्रेन थी। हालांकि उस समय लगभग 5.00 ही बजे थे, परन्तु हम रास्ते में कुछ जगह झरनों पर भी रूकने वाले थे तथा अंधेरा होने के साथ माउंट आबू से आबूरोड जाने वाला रास्ता सुनसान होने लगता है। अतः जंगली जानवरों के भय तथा लूटपाट की आशंका के कारण वाहनचालक रात को आबूरोड जाना पसंद नहीं करते हैं। चलते समय नक्की झील के पास वाले बाजार में ही 'मदर्स किचन' नाम से एक दुकान है, जहाँ हम लोगों ने कॉफी पी और हमें वहाँ की कॉफी का स्वाद बहुत ही पसंद आया। इसके बाद हम आबूरोड के लिए निकल गए।
रास्ते में एक मोड़ पर नीचे गहरी घाटी में बहते झरने का दृश्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। हम थोड़ी देर वहाँ रूके। कुछ तस्वीरें ली तथा वापस चल दिए। इसके कुछ किमी आगे सड़क के बिल्कुल नजदीक छोटा मगर सुंदर झरना देख हम रूके बिना नहीं रह सके। पहाड़ों से बहकर आने वाला झरने का जल काफी शीतल तथा पारदर्शी था। हम थोड़ी देर वहाँ रूके, झरने की तस्वीरें ली तथा फिर वापस अपने रास्ते चल दिए।
आबू रोड पहुँचकर हमने वाहनचालक को पूरे दिन का किराया 1500 रुपये चुकाया। रेलवे स्टेशन के पास ही एक रेस्तरां में हमने रात्रि का भोजन लिया। भोजन के बाद हम रेलवे स्टेशन पहुँचे। हमारी ट्रेन आने में लगभग 40 मिनट का समय बाकी था, अतः हम लोग प्रतीक्षालय में बैठकर ट्रेन का इंतजार करने लगे। नियत समय पर ट्रेन आयी तथा हम माउंट आबू की खूबसूरत यादें लिए अपने घर के लिए रवाना हो गए।
Unbelievable
जवाब देंहटाएंThanks 🙏
हटाएंबहुत अच्छा लगा आपका ये ब्लॉग पढ़कर
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
हटाएंAmazing exp. sharing
जवाब देंहटाएंThanks
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