माउंट आबू की सैर (द्वितीय भाग) - Yatrafiber

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सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

माउंट आबू की सैर (द्वितीय भाग)

माउंट आबू यात्रा  PART-2

 Mount Abu ,Rajasthan Tourism: Travel Guide Mount Abu 

 

सभी पाठकों को नमस्कार,

          हमारी माउंट आबू यात्रा के प्रथम दिवस के बारे में मैं yatrafiber के पिछले ब्लॉग में लिख चुकी हूँ, आगे की यात्रा के अनुभव मैं इस ब्लॉग द्वारा साझा कर रही हूँ....

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माउंट आबू यात्रा  PART-3

 

          अगले दिन यानि 19 सितम्बर, 2020 को सुबह 9 बजे हम घूमने के लिए बिल्कुल तैयार थे। सबसे पहले हम पास ही स्थित एक रेस्तरां 'फूड इन' में नाश्ता करने गए। यहाँ के खाने का स्वाद हमें और अधिक बेहतर लगा। नाश्ते के बाद हमने नक्की झील घूमने का निर्णय लिया। नक्की झील मात्र कुछ ही दूरी पर स्थित होने के कारण हम पैदल घूमते हुए वहाँ चले गए।

          नक्की झील के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसे देवताओं द्वारा राक्षसों से बचने के लिए अपने नाखूनों से खोदा गया था। प्रारंभ में इसे नख की झील ही कहा जाता था, समय के साथ इसका नाम बदलकर नक्की झील पड़ गया। नक्की झील के बारे में एक और कथा भी प्रचलित है। रसिया बालम नाम के एक गरीब व्यक्ति को यहाँ की राजकुमारी से प्रेम हो गया था। राजकुमारी भी उसे चाहती थी। राजा ने राजकुमारी से विवाह की शर्त रखी कि जो भी व्यक्ति एक रात में झील खोद देगा, उसी से राजकुमारी का विवाह किया जाएगा। रसिया बालम ने अपने प्रेम को पाने के लिए रातभर में नक्की झील खोद दी। परन्तु राजकुमारी की माता को गरीब रसिया बालम से नफरत थी। अतः उसने रसिया बालम के साथ धोखा किया व सुबह होने से पहले ही मुर्गे की बाँग लगा दी। रसिया बालम अपना प्रेम ना मिल पाने से बहुत दुखी हुआ और वहीं अपने प्राण त्याग दिए। रसिया बालम तथा राजकुमारी (कुंवारी कन्या) का मंदिर भी यहाँ स्थित है।

          चारों ओर ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से घिरी नक्की झील लगभग ढ़ाई किमी के दायरे में फैली हुई है। मीठे पानी की यह झील राजस्थान की सबसे ऊँची झील है। नक्की झील के चारों ओर पर्वत श्रृखलाएँ, पहाड़ों पर टॉड रॉक, नन रॉक जैसी चट्टानी आकृतियाँ, झील के बीच-बीच में उभरी चट्टानें व टापू, झील में तैरते सफेद जलीय पक्षी तथा पहाड़ों से झील में उतरते बादल विहंगम दृश्य उत्पन्न करते हैं। यहाँ सर्दियों के समय कई बार तापमान 0℃ से भी नीचे चला जाता है। ऐसे में नक्की झील का पानी पूरी तरह जम जाता है।

          नक्की झील में बॉटिंग करना बहुत ही रोमांचकारी है। यहाँ पैडल बॉट तथा शिकारा बॉट दोनों ही उपलब्ध हैं। सैलानी अपनी रूची के अनुसार कोई सी भी बॉटिंग कर सकते हैं। हमने पैडल बॉट को चुना। पैडल बॉट का शुल्क 200 रुपये प्रति व्यक्ति था तथा 30 मिनट का समय बॉटिंग के लिए दिया गया था। सबसे पहले हमने 'लाईफ जैकेट' पहनी, जिसका मूल्य 5 रुपये प्रति जैकेट था। बहुत से लोग लाईफ जैकेट पहनना पसंद नहीं करते हैं, परन्तु यदि किसी को तैरना नहीं आता है तो उसे यह अवश्य पहननी चाहिए। क्योंकि यदि दुर्भाग्यवश कोई दुर्घटना हो भी जाती है और नाव पलट जाती है तो यह लाईफ जैकेट व्यक्ति को डूबने से बचाती है। यही कारण है कि हमने स्वयं के साथ बच्चों के लिए भी लाईफ जैकेट ली। झील में बॉटिंग करते समय चारों ओर का नजारा इतना अच्छा लगता है कि समय कब बीत जाता है, पता भी नहीं चलता।

          झील के चारों तरफ रघुनाथ मंदिर, भारत माँ नमन स्मारक, गाँधी घाट तथा सुंदर फूलों वाले पौधों युक्त मार्ग स्थित है। झील के बीच में एक छोटा सा टापू स्थित है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है। झील का पानी लगातार शिवलिंग का अभिषेक करता रहता है। यहाँ शिव परिवार भी स्थापित किया गया है। शिवलिंग के पास एक घंटी भी लगी हुई है। लोग बॉटिंग के साथ शिवलिंग के अभिषेक का भी लाभ पाते हैं। नक्की झील में उभरे एक छोटे से टापू पर फंव्वारा भी लगाया गया है। इस फंव्वारे से ऊँची जलधारा निकलती देख पर्यटकों का रोमांच और बढ़ जाता है।

          ओस भरी सुबह के उगते सूरज की किरणों से चमकते पानी वाली नक्की झील हो या दिन में बॉटिंग का आनंद लेते पर्यटकों से गुलजार नक्की झील, जलक्रीड़ाओं का लुत्फ उठाते सैलानियों की भीड़ से आबाद नक्की झील हो या रात को रंग-बिरंगी रोशनियों से घिरी शांत नक्की झील, इसका हर रूप देखने लायक है।

          नक्की झील के किनारे एक सुंदर बगीचा बना हुआ है। बगीचे में ऊँचे-घने वृक्षों के अलावा सजावटी पौधे भी लगाए गए हैं। बगीचे में लोगों के बैठने के लिए जगह-जगह बेंच बनी हुई हैं। इसके अलावा एक छतरी भी बनाई गई है, जिसमें लोग आराम करने के साथ फोटो खिंचवाते हुए भी दिख जाते हैं। हम भी थोड़ी देर वहीं आराम करने बैठ गए। इस बगीचे में बहुत से फोटोग्राफर भी उपलब्ध हैं, जिनसे झील के यादगार लम्हों को कैमरे में कैद करवाया जा सकता है। ये लगभग आधे-एक घंटे में फोटो का प्रिंट निकलवाकर दे देते हैं। इसका शुल्क 40-60 रुपये प्रति फोटो लिया जाता है। इसके अलावा पास ही स्थित दुकानों से किराये पर राजस्थानी वस्त्र लेकर उनमें भी फोटो खिंचवाई जा सकती है। इनका किराया 100-200 रुपये तक होता है। बगीचे में लकड़ी की तख्तियों पर रंगों से नाम लिखने वाले भी कई लोग मिल जाएँगे। लोग अपने घरों के लिए इनसे नाम की तख्तियाँ बनवाने के अलावा अपने प्रियजनों का नाम लिखवाकर उनके लिए उपहार के तौर पर भी इन तख्तियों को खरीदते हैं।

          बगीचे के एक कोने में बच्चों के लिए 'गेम जॉन' भी बना हुआ है। हम भी बच्चों के साथ वहाँ गए। वहाँ अलग-अलग तरह के कुछ झूले व खेल उपलब्ध हैं। दिनाया और काव्यांश वहाँ पहुँचते ही खुश हो गए और सभी झूलों के पास जाकर उनका मुआयना करने लगे। सभी खेलों के लिए अलग-अलग शुल्क निर्धारित है। बच्चों ने घोड़े पर बैठकर झूलने का आनंद लिया।

          

          नक्की झील के आसपास के क्षेत्र में काफी अच्छा बाजार भी स्थित है, जहाँ से लोग खरीददारी करना बहुत पसंद करते हैं। इस बाजार में विशेष तौर पर हस्तकला निर्मित सामग्री जैसे - वस्त्र, चादरें, पर्स, गहने, चप्पलें, खिलौने आदि मिलते हैं। हम लोगों ने भी यहाँ से हस्तकला निर्मित कुछ वस्त्र तथा चादरें खरीदीं। दोपहर हो गई थी और भूख भी लग रही थी, अतः 'फूड इन' रेस्तरां में जाकर हमने दोपहर का भोजन लिया। भोजन के पश्चात हमने एक निजी वाहन किया तथा घूमने निकल पड़े।

          सबसे पहले हम हनीमून पॉइंट देखने पहुँचे। हनीमून पॉइंट को अनादरा पॉइंट के नाम से भी जाना जाता है। वहाँ पहुँचते ही हमें आभास हो गया कि क्यों उस जगह का नाम हनीमून पॉइंट रखा गया है। पहाड़ के छोर पर खड़े होकर सामने दूर तक फैले हरे-भरे क्षेत्र की खूबसूरती, नीचे घाटी में बहते झरने से उत्पन्न कल-कल की ध्वनि, पक्षियों का कलरव, वृक्षों पर लंगूरों की उछल-कूद आदि सब दृश्य देखकर नवविवाहित जोड़ा तो क्या किसी भी व्यक्ति को यहाँ समय बीतने का अहसास ही नहीं होगा। यहाँ बैठकर ऐसा लगता है, मानो हम प्रकृति की गोद में ही आकर बैठ गए हों। शहरी जीवन की भागदौड़ भरी जिंदगी से कुछ समय निकालकर ऐसे शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में आकर समय बिताना बहुत सुकूनभरा होता है। प्रकृति के करीब आकर सारा तनाव दूर हो जाता है तथा सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इसके पास ही एक थोड़ा ऊँचा पॉइंट और भी है, वहाँ से भी प्रकृति की सुंदर चित्रकारी को निहारा जा सकता है।


                                           

          

          इसके बाद हम माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य देखने पहुँचे। सन् 1960 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया था। इस घने वन्यक्षेत्र में पेड़-पौधों की बहुत सी दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह क्षेत्र भालुओं के लिए काफी अनुकूल है। यही कारण है कि यहाँ भालुओं की संख्या काफी अधिक है। माउंट आबू में आबादी क्षेत्र में भालुओं के आ जाने की घटनाएँ भी कई बार अखबार में छपती रहती हैं। भालू के अतिरिक्त सियार, जरख, लोमड़ी, सांभर, नीलगाय, चीतल, लंगूर, जंगली बिल्ली, तेंदुआ, जंगली सुअर आदि जंगली जानवर भी यहाँ बहुतायत में पाए जाते हैं। अभयारण्य में जीव-जंतुओं को किसी भी प्रकार की खाद्य सामग्री डालने पर पूर्णतः रोक है। इसके अतिरिक्त अभयारण्य में प्लास्टिक ले जाने पर भी रोक है। इस अभयारण्य में पक्षियों की भी बहुत सारी दुर्लभ प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं। घने जंगल में इस तरह खुले घूमते वन्य जीवों को करीब से देखना काफी रोमांचित कर देने वाला अनुभव है।


          वहीं पर हम ट्रेवर्स टैंक देखने गए। ट्रेवर्स टैंक देखने के लिए टिकट का मूल्य 55 रुपये प्रति व्यक्ति है। इसके अलावा वाहन का शुल्क 210 रुपये था। पहाड़ों के बीच में बनाए गए इस खूबसूरत कृत्रिम तालाब का नाम ट्रेवर नाम के अभियंता(इंजीनियर) के नाम पर रखा गया है। यहाँ मगरमच्छ प्रजनन के उद्देश्य से मगरमच्छ का जोड़ा छोड़ा गया था, अब यहाँ मगरमच्छ के बच्चे भी देखे जा सकते हैं। तालाब के पास से एक पदमार्ग बनाया गया है। यहीं से कुछ दूरी पर उबड़-खाबड़ मार्ग से ऊपर जाकर वॉच टावर का अनुभव लिया जा सकता है। ऊपर एक छतरी भी लगाई गई है। ऊँचाई पर खड़े होकर चारों तरफ के मनोरम प्राकृतिक दृश्यों को निहारा जा सकता है। ऊपर खड़े होकर नीचे तालाब में तैरते मगरमच्छों को देखना भी एक अनोखा अनुभव है। कुछ समय ऊपर बीताकर हम नीचे आ गए। शाम होने वाली थी। माउंट आबू से दिखाई देने वाला सूर्यास्त का खूबसूरत नजारा विश्वप्रसिद्ध है। अतः हम लोग 'सनसेट पॉइंट' के लिए निकल गए।



          सनसेट पॉइंट से लगभग 1 किमी पहले ही वाहनों को रोक दिया जाता है। वहाँ से आगे या तो पैदल जा सकते हैं, या फिर घोड़े पर बैठकर भी जा सकते हैं। घोड़े का शुल्क 100 रुपये प्रति व्यक्ति है। इसके अतिरिक्त हाथगाड़ी भी उपलब्ध हैं। एक छोटी सी गाड़ी में दो लोगों के बैठने की जगह होती है, इसे वे लोग हाथों से धक्का देकर चलाते हैं। हाथगाड़ी का शुल्क भी 100 रुपये प्रति व्यक्ति है। हमने घोड़े का विकल्प चुना। बच्चे तो घोड़े पर बैठते ही खुश हो गए। दिनाया घोड़े पर बैठकर तालियाँ बजाते हुए कहने लगी, "दिनाया का घोड़ा टिक टिक टिक" तो काव्यांश पूरे रास्ते "लकड़ी की काठी, काठी पर घोड़ा" गाता रहा। मंजिल पर पहुँचकर भी दोनों बच्चे घोड़े से उतरना ही नहीं चाहते थे। उनकी इन बालसुलभ क्रीड़ाओं को देखकर हम लोग हँसे बिना नहीं रह पाए। खैर मुश्किल से उन्हें नीचे उतारा और एक ऐसी जगह जाकर हम बैठ गए, जहाँ से सूर्यास्त का नजारा अच्छी तरह से देखा जा सके।

          सूर्यास्त होने में कुछ समय बाकी था, अतः काफी लोग वहाँ बैठकर इंतजार कर रहे थे। सनसेट पॉइंट पर भी बहुत से फोटोग्राफर मिल जाएँगें, जिनसे सूर्यास्त के साथ फोटो खिंचवाई जा सकती है। चाय की चुस्कियों के बीच यह कयास लगाया जा रहा था कि मानसून के कारण छाए बादलों के बीच सूर्यास्त दिखेगा भी या नहीं। बादलों की स्थिति देखकर तो यही लग रहा था कि सूर्यास्त नहीं दिखने वाला, परन्तु उम्मीद पर दुनिया कायम है, शायद यही सोचते हुए सभी लोग वहाँ डेरा जमाए हुए थे। धीरे-धीरे साँझ ढ़ल रही थी और ढ़लती साँझ के साथ सूर्यास्त ना दिखने के आसार देख लोगों की भीड़ भी कम होती जा रही थी। खैर इतने इंतजार के बाद महज एक-दो मिनट के लिए ही सही, सूर्यदेव ने दर्शन दिए। डूबते सूरज को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो बड़ा सा लाल गोला आसमान से उतरकर धरती की गोद में समा रहा है।

          सूर्यास्त होते ही अंधकार गहरा होना प्रारंभ हो गया। अतः हम लोग वापस लौट पड़े। वापस आते समय हम महिलाएँ बच्चों सहित हाथगाड़ी में बैठीं तथा वे दोनों मित्र पैदल घूमते हुए गाड़ी तक पहुँचे। गाड़ी से हम लोग वापस होटल पहुँचे। हमने वाहन चालक को पूरे दिन का किराया 1200 रुपये चुकाया। कुछ देर विश्राम करने के बाद 'फूड इन' रेस्तरां में रात्रि का भोजन लिया तथा फिर कुछ देर पास ही स्थित बाजार में टहलने के बाद अपने-अपने कमरों में जाकर सो गये।

                                                                                                                    क्रमशः..................................

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